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01:19, 1 मई 2013 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=नीरज गोस्वामी
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<poem>
मैं राज़ी तू राज़ी है
क्यों ग़ुस्से में क़ाज़ी है
आंखें करती हैं बातें
मुंह करता लफ्फाज़ी है
जीतो हारो फर्क नहीं
ये तो दिल की बाज़ी है
तुम बिन मेरे इस दिल को
दुनिया से नाराज़ी है
कड़वा मीठा हम सब का
अपना अपना माज़ी है
दर्द अभी कम है ‘नीरज’
चोट अभी कुछ ताज़ी है
</poem>