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काहे करत सखी बात मोहन की |
बिछुर गए हमसे कर प्रीति, जानि न प्रीतम मन की |
ब्रज सुनों सूनों कीनो हरि देखो, निठुर भये प्रभु सनकी || काहे ..
बिडरी -बिडरी फिरत कृष्ण बिन, सुधि नाहीं कछु तन की |
गुवाल बाल सब ताहि पुकारे, याद करत हैं बन की || काहे..
हमसे प्रीत कृष्ण क्यों करि हैं, वहां कामिनी गोरे तन की ||काहे..
शिवदीन राम, कृष्ण कब मिलिहैं, सुधि भूले निज जन की |
हाथ पाकर पकर प्रभु पार उतारो, पीर हरो गोपीन की ||काहे..
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