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14:18, 12 मई 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार='अना' क़ासमी
|संग्रह=मीठी सी चुभन/ 'अना' कासमी
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{{KKCatGhazal}}
<poem>
बर्थ पर लेट के हम सो गये आसानी से
फ़ायदा कुछ तो हुआ बे सरो सामानी से
माँ ने स्कूल को जाती हुई बेटी से कहा
तेरी बिंदिया न गिरे देखना पेशानी<ref> माता </ref> से
मुफ़्त में नेकियाँ मिलती थीं शजर<ref> पेड </ref> था घर में
अब हैं महरूम3 परिंदों की भी मेहमानी से
मैं वही हूँ के मिरी क़द्र न जानी तुमने
अब खड़े देखते क्या हो मुझे हैरानी से
इसमें राँझाओं की नालायक़ियों का क्या है
इश्क़ ज़िंदा है तो बस हुस्न की क़ुर्बानी से
कोई दानाई यहाँ काम नहीं आती ’अना’
शेर कुछ अच्छे निकल आते हैं नादानी से
<poem>
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