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00:43, 16 मई 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नीरज दइया
|संग्रह= उचटी हुई नींद / नीरज दइया
}}
{{KKCatKavita}}<poem>प्रेम के बिना
नहीं खिलते फूल
कुछ भी नहीं खिलता
बिना प्रेम के।
मुरझा जाते हैं रंग
उड़ जाती है खुशबू
और खो जाती है हंसी
बिना प्रेम के।
जो है खिला हुआ
उस के पीछे प्रेम है
जहां नहीं है प्रेम
वहां सुनता हूं-
खोखली हंसी।</poem>