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00:45, 16 मई 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नीरज दइया
|संग्रह= उचटी हुई नींद / नीरज दइया
}}
{{KKCatKavita}}<poem>घुट घुट कर मरने से बेहतर है
जीएं कुछ देर और....
भूल जाएं सब कुछ
चलें कुछ आगे और....
किसी आकाश का बनकर बादल
बरसें कुछ देर और....
आंसुओं को पोंछ कर चुनें
जिंदा कुछ सपने और....</poem>
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