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परम तिरोहित तारक-चय था,
था कज्जलित ककुभ का अंक।1।
 
दामिनि छिपी निविड़ घन में थी
अटल राज्य तम का अवलोक।
मज्जित भूत निचय का पोत।
होता कौन न होता जग में
यदि यह तुच्छ कीट खद्योत।3।ललना-लाभखुला था प्रकृति-सृजन का द्वार।हो रही थी रचना रमणीय।बिरचती थी अति रुचिकर चित्र।तूलिका बिधि की बहु कमनीय।1। रंग लाती थी हृदय-तरंग।बह रहा था चिन्ता का सोत।मंद गति से अवगति-निधि मधय।चल रहा था जग-रंजन पोत।2। चित्र-पट पर भव के उस काल।खिंच गयी एक मूर्ति अभिराम।सरलता कोमलता अवलम्ब।सरसता मय मोहक रति काम।3। उमा सी महिमा मयी महान।रमा सी रमणीयता निकेत।गिरासी गौरव गरिमावान।मानवी जीवन-ज्योति उपेत।4। अलौकिक केलि-कला-कुल कान्त।हृदय-तल सुललित लीलाधाम।मधार माता-मानस-सर्वस्वनाम था ललना लोक-ललाम।5।खद्योत।2।
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