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|रचनाकार=कविता वाचक्नवी
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रंगी परातों से चिह्नित कर
 
चलते पायल-से रिश्ते
 
हँसी -ठिठोली की अनुगूँजें
 
भरते, कलकल-से रिश्ते
पसली के अंतिम कोने तक
 
कभी कहकहे भर देते
 
दिन-रातों की आँख-मिचौनी
 
हैं ये चंचल-से रिश्ते
उमस घुटन की वेला आती
 
धरती जब अकुलाती है
 
घन-अंजन आँखों से चुपचुप
 
बरसें बादल -से रिश्ते
पलकों में भर देने वाली
 
उंगली पर रह जाते हैं
 
बैठ अलक काली नजरों का
 
जल हैं, काजल -से रिश्ते
कभी तोड़ देते अपनापन
 
कभी लिपट कर रोते हैं
 
कभी पकड़ से दूर सरकते
 
जाते, पागल -से रिश्ते
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