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आत्मबोध / कन्हैयालाल नंदन

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|रचनाकार=कन्हैयालाल नंदन
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<poem>
यह सब कुछ मेरी आंखों के सामने हुआ!
आसमान टूटा,
उस पर टंके हुये
ख्वाबों के सलमे-सितारे
बिखरे.
देखते-देखते दूब के दलों का रंग
पीला पड़ गया
फूलों का गुच्छा सूख कर खरखराया.
यह सब कुछ मेरी आंखों के सामने हुआ!<br><br> आसमान टूटा,<br>उस पर टंके हुये<br>ख्वाबों के सलमे-सितारे<br>बिखरे.<br>देखते-देखते दूब के दलों का रंग<br>पीला पड़ गया<br>फूलों का गुच्छा सूख कर खरखराया.<br><br> और ,यह सब कुछ मैं ही था<br>यह मैं<br>बहुत देर बाद जान पाया.<br>
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