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ज़िन्दगी / कुँअर बेचैन

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|रचनाकार=कुँअर बेचैन
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दुख ने तो सीख लिया आगे-आगे बढ़ना ही
 
और सुख सीख रहे पीछे-पीछे हटना
 
सपनों ने सीख लिया टूटने का ढंग और
 
सीख लिया आँसुओं ने आँखों में सिमटना
 
पलकों ने पल-पल चुभने की बात सीखी
 
बार-बार सीख लिया नींद ने उचटना
दिन और रात की पटरियों पे कटती है
 
ज़िन्दगी नहीं है, ये है रेल-दुर्घटना।
'''''-- यह कविता [[Dr.Bhawna Kunwar]] द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।<br><br>'''''
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