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रश्मिरथी / पंचम सर्ग / भाग 2

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|संग्रह= रश्मिरथी / रामधारी सिंह "दिनकर"
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<poem>
आहट पाकर जब ध्यान कर्ण ने खोला,
कुन्ती को सम्मुख देख वितन हो बोला,
तुझ तक न आज तक दिया कभी भी आने,
यह गोपन जन्म-रहस्य तुझे बतलाने।
</poem>
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