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पीर के कुछ बीज / कविता वाचक्नवी
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15:12, 15 जुलाई 2013
वर्तनी सुधार
गीत, कविता, छंद बनकर।
चिर
चीर
पृथ्वी के हृदय को
फूट पड़ते हैं
कभी भी ये
Kvachaknavee
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