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|संग्रह = छैंया-छैंया / गुलज़ार
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<poem>
मुझको इतने से काम पे रख लो...
जब भी सीने पे झूलता लॉकेट
उल्टा हो जाए तो मैं हाथों से
सीधा करता रहूँ उसको
मुझको इतने से काम पे रख लो...<BR>जब भी सीने पे झूलता लॉकेट <BR>उल्टा हो जाए तो मैं हाथों से<BR> सीधा करता रहूँ उसको<BR><BR>
मुझको इतने से काम पे रख लो...<BR><BR>जब भी आवेज़ा उलझे बालों मेंमुस्कुराके बस इतना सा कह दो आह चुभता है ये अलग कर दो
जब भी आवेज़ा उलझे बालों में<BR>मुस्कुराके बस इतना सा कह दो <BR>आह चुभता है ये अलग कर दो<BR><BR>मुझको इतने से काम पे रख लो....
मुझको इतने से काम पे रख जब ग़रारे में पाँव फँस जाएया दुपट्टा किवाड़ में अटकेएक नज़र देख लो....<BR><BR>तो काफ़ी है
जब ग़रारे में पाँव फँस जाए<BR>या दुपट्टा किवाड़ में अटके<BR>एक नज़र देख लो तो काफ़ी है<BR><BR> मुझको इतने से काम पे रख लो...<BR/poem>
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