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<Poem>
 
छोटी-छोटी
शिकायतें कई बार
तो सार्थक करो, ताकि
हर घर चहके
खुषियां खुशियाँ महकें
रोता बच्चा
टूटे बर्तन
निष्पाप, निष्कलंक
नितांत मौलिक
 
</Poem>
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