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09:33, 15 अगस्त 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
| रचनाकार= इरशाद खान सिकंदर
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<poem>
जिस्म दरिया का थरथराया है
हमने पानी से सर उठाया है
शाम की सांवली हथेली पर
इक दिया भी तो मुस्कुराया है
अब मैं ज़ख़्मों को फूल कहता हूँ
फ़न ये मुश्किल से हाथ आया है
जिन दिनों आपसे तवक़्को थी
आपने भी मज़ाक़ उड़ाया है
हाले दिल उसको क्या सुनाएँ हम
सब उसी का किया-कराया है
</poem>