947 bytes added,
16:17, 15 अगस्त 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
| रचनाकार= इरशाद खान सिकंदर
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
ख़ामोशी की बर्फ़ पिघल भी सकती है
पल भर में तस्वीर बदल भी सकती है
तुम जिनसे उम्मीद लगाये बैठे हो
उन खुशियों की साअत टल भी सकती है
यादों की तलवार है मेरी गर्दन पर
ऐसे में तो जान निकल भी सकती है
लड़ते वक्त कहाँ हमने ये सोचा था
तेरी फुर्क़त हमको खल भी सकती है
मुमकिन है आ जाये मुर्दादिल में जाँ
तुम आओ तो धडकन चल भी सकती है
</poem>