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नमन तुम्हे शिव ! जिसकी महिमा अपरम्पार , अम्बर सा जो पारदर्शी है , गुण सब जिस में सृष्टि सृजन के ,
पालन और भंग करने के
विश्व अनेकों ! काश भक्ति ,
तीव्र भक्ति मेरे जीवन की
मिल जाए उस से, उस शिव से ,
स्वामी सबका हो कर भी जो परे स्वयं से .
जो शाश्वत स्वामी है सबका ,
जो सारे भ्रम का है हर्ता,
जिसका सबसे उत्कृष्ट प्रेम, प्रकट है,
सब नामों में बढकर नाम ."महादेव, " जो सबका धाम !
पावन आलिंगन में जिसके प्रेम बरसता ,
दर्शाता अपने अंतर में , कि शक्ति ये क्षीण मात्र और परिवर्तनीय .
निहित जहाँ अंधड़ अतीत के ,
संस्कार उद्वेलित शक्ति
तीव्र ,जल जैसे उमढाता लहरें;
जिसमे 'मैं' 'तू'द्वन्द उपजता बढ़ता ,पलता ;उसे नमन ,शिव में स्थित ,शांति प्रगाढ़ !
जहाँ बोध जनक - जन्यों का ,शुचि विचार ,असीमित रूप ,समाहित होते सत्य में ;मिट जाता बोध अन्तः -बाह्य का -प्राण वायु हो जाती शांत -पूजूँ मैं उस 'हर' को,हरता जो मन की गतिविधियाँ .शिव का स्वागत !
हर क्लेश और तम का नाशक ,अभ्रक ज्योति, श्वेत ,व सुन्दर श्वेत कमल के खिलने जैसा ,अट्टहास से ज्ञान बिखेरे ;जो निरत रहे आत्मध्यान में ,दर्शन देता ह्रदय कमल में ,
राजहंस जो शांत झील का
मेरे मन की , रक्षक मेरा ,नमन है उसे !
वह जो पूर्ण अमंगल हर्त्ता ,निष्कलंक करता युग युग को ;दक्ष सुता ने दिया जिसे कर ;जो है श्वेत कमलिनी सा मधु ,सुन्दर ; सदा रहे तत्पर जो प्राण त्यागने परहित प्रतिपल ,दृष्टि निहित दुर्बल दरिद्र पर ;कंठ नील है विष धारण से ;उसे है नमन !
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