मस्तिष्क की भीतरी शिराओं तक गूँज गया है
और मुझे हिलोर गया है अंदर तक
एक गहरी सी टीस रह-रह कर उठती है
और मन शिशु की तरह माँ का वक्ष टटोलता है
मैंने तुम्हारे प्रेम को कुछ इस तरह महसूसा
जैसे कि माँ बच्चे के कोमल नन्हें अनछुए होंठों को
पहली बार अनचीन्हे से अंदाज में महसूसती है
दर्द का तनाव अपने सिरजे को छाती से लगाते ही
आह्लाद की धारा में फूट बहता है क्रमश:
गालों पर दूध की बुँदकियाँ लगाए नन्हें से
बच्चे से तुम
अपने विशाल कलेवर के साथ खड़े हो
मेरे सम्मुखऔर
मैं गंगोत्री की तरह फूट पड़ी हूँ ।
और कुछ अस्फुट शब्दों के
सिवाय एक अधूरे सन्नाटे के
उस वक़्त मैंने तुम्हारे शब्दों को अपना बना लिया
सुनो
अब वे शब्द मेरे भी उतने ही