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|रचनाकार=मीर तक़ी 'मीर'
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[[Category:ग़ज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem> अपने तड़पने की मैं तदबीर पहले कर लूँतब फ़िक्र मैं करूँगा ज़ख़्मों को भी रफू का।
अपने तड़पने की मैं तदबीर पहले कर लूँ<br>यह ऐश के नहीं हैं या रंग और कुछ हैतब फ़िक्र मैं करूँगा ज़ख़्मों को भी रफू हर गुल है इस चमन में साग़र भरा लहू का।<br><br>
यह ऐश के नहीं हैं या रंग और कुछ है<br>हर गुल है इस चमन में साग़र भरा लहू का।<br><br> बुलबुल ग़ज़ल सराई आगे हमारे मत कर<br>
सब हमसे सीखते हैं, अंदाज़ गुफ़्तगू का।
</poem>
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