Changes

वंचना हमर माय थिकी
जे कुण्ठाक दूध छोड़ि रहली अछि।
 
और अब यही कविता हिन्दी में पढ़ें
 
कर्ण के कवच और कुण्डल की तरह
हमने अपनी सम्पूर्ण योगाकाँक्षा को
दे दिया परिस्थति-विप्र को दान
मेरे पिता नहीं थे द्रोणाचार्य
बावजूद इसके मैं हूँ अश्वत्थामा
वँचना मेरी माँ है
जो कुण्ठा का दूध छोड़ रही है ।
 
अनुवाद: विनीत उत्पल
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits