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ग़मे-दुनिया बहुत इज़ारशाँ है / ख़ुमार बाराबंकवी
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06:03, 1 सितम्बर 2013
|रचनाकार=ख़ुमार बाराबंकवी
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ग़मे-दुनिया बहुत ईज़ारशाँ है
कहाँ है ऐ ग़मे-जानाँ! कहाँ है
सलामे-आख़िर अहले-अंजुमन को
'ख़ुमार' अब ख़त्म अपनी दास्ताँ है
</poem>
Lalit Kumar
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