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यह ज़िन्दगी का कारवाँ ,इस तरह चलता रहे ।<br>

हर देहरी पर अँधेरों में दिया जलता रहे ॥ <br>

आदमी है आदमी तब ,जब अँधेरों से लड़े ।<br>

रोशनी बनकर सदा ,सुनसान पथ पर भी बढ़े ॥<br>

भोर मन की हारती कब ,घोर काली रात से ।<br>

न आस्था के दीप डरते ,आँधियों के घात से ॥<br>

मंज़िलें उसको मिलेंगी जो निराशा से लड़े ,<br>

चाँद- सूरज की तरह ,उगता रहे ढलता रहे ।<br>

जब हम आगे बढ़ेंगे , आस की बाती जलाकर।<br>

तारों –भरा आसमाँ ,उतर आएगा धरा पर ॥<br>

आँख में आँसू नहीं होंगे किसी भी द्वार के ।<br>

और आँगन में खिलेंगे ,सुमन समता –प्यार के ॥<br>

वैर के विद्वेष के कभी शूल पथ में न उगें ,<br>

धरा से आकाश तक बस प्यार ही पलता रहे ।<br>

24-4-2007<br>
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