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18:23, 3 नवम्बर 2007 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=साहिर लुधियानवी
|संग्रह=
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मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया
हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया
:::::बरबादियों का सोग मनाना फ़ुजूल था
;;;;;बरबादियों का जश्न मनाता चला गया
जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लिया
जो खो गया मैं उसको भुलाता चला गया
:::::ग़म और ख़शी में फ़र्क़ न महसूस हो जहाँ
:::::मैं दिल को उस मुक़ाम पर लाता चला गया