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भाषा / विवेक निराला
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05:34, 17 सितम्बर 2013
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मेरी पीठ पर टिकी
एक नन्हीं-सी लड़की
मेरी गर्दन में
अपने हाथ डाले हुए
जितना सीख कर आती है,
उतना ही मुझे सिखाती है ।
उतने में ही अपना
सब कुछ कह जाती है ।
</poem>
अनिल जनविजय
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