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मुझसे है ये सारी दुनिया मान कर छलता रहा / मानोशी
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19:30, 28 सितम्बर 2013
<poem>
मुझसे है ये सारी दुनिया मान कर छलता रहा
मैं ज़मीं में दफ़्न था ऊपर जहां चलता रहा
उसको अब मुझसे शिकायत है कि मैं कमज़ोर हूँ
’दोस्त’ जिसकी ख़्वाहिशों में उम्र भर ढलता रहा
</poem>
Manoshi Chatterjee
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