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यह संध्या फूली / महादेवी वर्मा
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21:34, 9 नवम्बर 2007
मुरझाया वह कंज बना जो मोती का दोना,<br>
पाया जिसने प्रात उसी को है अब कुछ खोना; <br><br>
आज सुनहली रेणु मली सस्मित गोधूली ने; रजनीगंधा आँज रही है नयनों में सोना !<br>
Pratishtha
KKSahayogi,
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