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ओळूं / जनकराज पारीक

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|संग्रह=
}}
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]{{KKCatRajasthaniRachna}}{{KKCatKavita‎}}<poem>ठेला-ठेल मची सड़कां पर,सुस्तांवण न कठै न ठांव ।इण माया नगरी में आई , ओळूं थांरी म्हारा गांव ॥
मिनखपणै रो काळ अठै है,
पड़्यो प्रीत रो टोटो ।
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