|संग्रह=बोली तूं सुरतां / प्रमोद कुमार शर्मा
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[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
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आ किसी तिरस
जिकी बुझै ही कोनी।
जित्तो पीवूं
उत्ती ही बढ़ जावै !
हद है कदै-कदै तो
आ म्हारै कांधै चढ़ जावै !
अर म्हारै खातर -
उदासी रा
गहरा क्षण गढ़ जावै !
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