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छोरी: एक / मदन गोपाल लढ़ा

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|संग्रह=म्हारै पांती री चिंतावां / मदन गोपाल लढ़ा
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<Poempoem
छोरी
मुळकै है
सोधती रेवै
आपरै हुवणै रो सांच।
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