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छोरी: तीन / मदन गोपाल लढ़ा

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|संग्रह=म्हारै पांती री चिंतावां / मदन गोपाल लढ़ा
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<Poempoem
बरतण मांजती बगत
छोरी बांचै है
उडीकै है
मेह नै।
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