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गोरधन / सत्यप्रकाश जोशी

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|रचनाकार=सत्यप्रकाश जोशी |संग्रह=राधा / सत्यप्रकाश जोशी
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<Poempoem
भीजणदयौ साथणियां
म्हनैं इण बिरखां में भीजणदयौ।
म्हैं वारी रे थां पर वारी।
कांन्ह !
आज थां पर जितरौ गरब करूं थोड़ौ,
किण नै आज इतरौ
आपरै आपा रौ गुमेज
कै डूबती बस्ती नै यूं बचायलै !
किण रै हिया में इतरी हूंस
कै परबत नै पेरवा माथै नचायलै !
इण आणंद मंगळ री घड़ी में
म्हनैं मत बरजौ रै कोई
भीजणदयौ साथणियां
म्हनैं इण बिरखां में भीजणदयौ।
 </Poempoem>
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