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04:35, 18 अक्टूबर 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शिवदान सिंह जोलावास
|संग्रह=
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[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
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<poem>चूल्है रा ताप मांय
पिघळ रैयी है चांदणी।
पूरी गरमी साथै
तवा माथै इतरावै है
गोळ-गोळ सूरज।</poem>
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