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00:30, 22 अक्टूबर 2013 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=महेन्द्र मिश्र
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|संग्रह=प्रेम व श्रृंगार रस की रचनाएँ / महेन्द्र मिश्र }}
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<poem> पातर-पातर गोरिया के पतरी कमरिया
मोर सँवरिया रे पतरी डगरीया धइले जाय।
पातर लप-लप गोरी पतरी अंगुरिया
मोर संवरिया रे लचकत पनिया के जाय।
सरिया के आरी-पारी गोटवा के जरिया
मोर सँवरिया के मटकत रहिया के जाय।
बेंदिया लिलरिया जइसे चमकत बिजुरिया
मोर-संवरिया रे कलियन पर भँवर लोभाय।
गावत महेन्दर मिसिर इहो रे पुरूबिया
मोर संवरिया रे देखले में जिया ना अघाय।
</poem>
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