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|संग्रह=प्रेम व श्रृंगार रस की रचनाएँ / महेन्द्र मिश्र
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<poem> देखहूँ के भइले सपनवाँ हो मोरा स्याम सुन्दर के।
कुबरी से प्रीत कइलें हमनी के तेज गइलें,
ना जानी कवने करनवाँ हो मोरा स्याम सुन्दर के।
जब जब इयाद पड़े नैना से लोर ढरे,
जइसे झरेला सवनवाँ हो मोरा स्याम सुन्दर के।
पापिन बिजुरिया इ रही-रही चमके,
सुनी-सुनी जागेला मदनवाँ हो मोरा स्याम सुन्दर के।
कहत महेन्दर कागा उचरऽ अंगनवाँ।
कब कइहें कृष्णजी भवनवाँ हो मोरा स्याम सुन्दर के।
</poem>
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