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|संग्रह=प्रेम व श्रृंगार रस की रचनाएँ / महेन्द्र मिश्र
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<poem> मधुबनवाँ से मोर कान्हा अइहे कि दू ना।
साँवली सुरतिया फेर देखइहे कि दू ना।
हँसी-अँसी कान्हा मोरा जिया के लोभवलें,
मोरा अंगना में बंसिया बजइहें कि दू ना।
ऊधो जी सनेश लाए बूढ़ा बाभना,
ई त जरिए के खेलारी हउएँ दाढ़ीजार ना।
कूबरी के जोग, भोग हमनी के बतावे,
इ त पोथी ले के आइल बारें उपुर परना।
हमनी जो जनितीं मोहन कूबरी से राजी,
हमहूँ कूबर बनइतीं फँसइती मोहना।
कहत महेन्द्र सुनी ल ऊधो बाभना,
इहाँ रोम-रोम बसल बारें कृष्ण साजनाँ।
</poem>
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