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|संग्रह=प्रेम व श्रृंगार रस की रचनाएँ / महेन्द्र मिश्र
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<poem>सून कह के गइलऽ श्याम हमरी भवनवाँ,
निरमोहिया भइल ए साँवरू।
तोहरो बतिया मतिया के मरलस,
इहे बाटे मन में घोराइल।
तोहरो बंसिया सपनवाँ में बाजेला,
अगिया लगावे एही तानवाँ।
द दरदिया देल अ ए साँवरू।
हमरो सुगनवाँ के भेंड़वा बनवलू
कइसन बाटे तोहार टोना।
ए कूबरो तू भोग ना पइबू
हमरा घर के सोनवाँ।
ए महूरवा भइलऽ ए साँवरू।
जवानी सुरतिया मन में बसल बा,
कवनो जतन से ना जाई।
ए ऊधो तू जा के कहिहऽ
अइसहीं बिताएब उमीरिया।
ए सपनवाँ भइल ए साँवरू।
</poem>
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