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|संग्रह=प्रेम व श्रृंगार रस की रचनाएँ / महेन्द्र मिश्र
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<poem>सुसुकत पनिया के चलली मोरी ननदी हे,
बाएँ दहिने बोले लागे काग, छोटी ननदी हे।
पेन्हीं त लेली ननदो धानी रंग के सारी, छोटी ननदी हे
चोलिया पहिरली बूटीदर। छोटी ननदी हे।
काँखवा तर लेहली ननदी माटी के घइलवा छोटी ननदी हे,
चली भइली बार के इनार। छोटी ननदी हे।
भोरे के गइलका ननदी भइलें दुपहरिया छोटकी ननदी हे।
के तोरा मिललें इयारा। छोटी ननदी हे।
कहत महेन्दर पिया बरजे ना मारे छीटी ननदी हे
जोबना भइला बा जीव के काल।
</poem>
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