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11:00, 23 अक्टूबर 2013 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=महेन्द्र मिश्र
|अनुवादक=
|संग्रह=प्रेम व श्रृंगार रस की रचनाएँ / महेन्द्र मिश्र
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<poem>पंतियो ना भेजे स्याम निपटे अनारी हे।
नेहिया लगाके श्याम गइलें पुरूबवा
केकरा से कहीं हम आपन अलचारी हे।
रहि-रहि सखिया हे मदन सतावे ला
मन करे मरिजाईं मार के कटारी हे।
दिलवा के बात सखी तोरे से बताईले
कि सेनुरा मिल बा बाकी बानी हम कुंआरी हे।
कहत महेन्दर राधा मानऽ मोर कहना
कि धीर धरऽ ना तोहे मिलिहें मुरारी हे।
</poem>
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