Changes

'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र मिश्र |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र मिश्र
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
{{KKCatBhojpuriRachna}}
<poem> सदा जमाना रहा है किसका सदा जवानी रही है किसकी।
बन-बन के सब बिगड़ गए हैं एक-सा जमाना रहा है किसकी।

गए वो बाली गए भीम भी कहो तो कुछ भी पता है किसकी।
गए वो अर्जुन गए कृसन भी जिन्हों ने दोस्ती सदा निबाही

गए वा राजा भी कर्ण दानी प्रताप छाया था जग में जिसकी।
गए वो राजा हरिचन्द्र भी वो सत्यववादी वो ब्रह्मचारी।

तजा न सत को सहा विपत को धरम का झंडा उड़ी है जिसकी।
उठो मोसाफिर हुवा सबेरा वो काल सिर पर सभी को घेरा

लगा रहा है कजा भी फेरा मौत मेहरबाँ हुआ है किसकी।
किया ना नेकी, बदी का गेठरी बगल दबाकर चला मोसाफिर-

छुटा सभी से तो नेह नात छेदाम संग में लगा है किसकी।
सदा महेन्दर दिलों के अंदर जपों निरंतर वो साम सुन्दर
करेगा वेरा वो पार तेरा धरम की किस्ती डूबी है किसकी।
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
2,357
edits