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06:12, 26 अक्टूबर 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरकीरत हकीर
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<poem>किसी से भी मांगना
रब्ब से भी
आदर नहीं देता
तुम्हें याद है …. ?
मैंने तुझ से मांग लिए थे
कई सारे रंग
अपनी नज्मों को
और खूबसूरत बनाने के लिए … ?
और तुमने मांग ली थी
बदले में उसकी कीमत
अपनी मुहब्बत की झोली खोल
उस दिन मैं
पाप की भागीदार होने से
बच गई थी
क्योंकि तेरा अनादर
मेरे लिए
रब्ब का अनादर है ….
</poem>
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