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06:24, 26 अक्टूबर 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरकीरत हकीर
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<poem>मुझे पता है
यह मुहब्बत से भरे ख़त
तूने मुझे यूँ ही
बहलाने के लिए लिखे हैं
क्योंकि तुम जानते हो ….
दर्द की महक किताब के
आखिरी पन्नों से ही
उठती है ….
</poem>
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