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06:25, 26 अक्टूबर 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरकीरत हकीर
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<poem>तुम तो गैर थे
तुम से मैंने मांगे भी न थे
फिर भी तूने भेज दिए थे
मेरी जरुरत के सारे अक्षर
वे जो मेरे अपने थे
उनकी ओर मैं
सारी उम्र तकती रही
पर वक़्त ने कोई अक्षर
झोली में न डाला …
</poem>
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