594 bytes added,
07:39, 26 अक्टूबर 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरकीरत हकीर
}}
{{KKCatNazm}}
<poem>जब सूरज डूबता
रात तारों को ओढ़ कर
उसके घर की ओर चल देती
उसकी आँखों में
सच्चाई देख …
श्मशान में दीया जलता
ज़िन्दगी धीमे से
आह भरती …
रात कांपते हाथों में
गुलाब पकड़े
कब्र में छुप जाती ….
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader