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07:57, 26 अक्टूबर 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरकीरत हकीर
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{{KKCatNazm}}
<poem>अपने वजूद को
बचाने की खातिर
कई बार खड़ी हुई हूँ
तुम्हारी चौखट पर
अपना हाथ फैलाई
तुझसे जरा सा
प्यार , विश्वास
और अपनत्व मांगती …
पर अब कोई उडीक नहीं
कर दूँगी ऐलान
अपनी होंद का …
अब मैंने चूड़ियाँ
उतार फेंकी हैं …
</poem>