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07:58, 26 अक्टूबर 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरकीरत हकीर
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<poem>आखिर क्यों चाहिए
तुम्हें बस उतना ही आकाश
जितना है उसकी बाहों का घेरा है ….
जितने हैं उसके पैर ….
जितनी है उसकी जमीन …
जितनी है उसकी चादर …
क्यों … ?
आखिर क्यों … ?
तुम्हारे पास भी पंख हैं
फिर हौसला क्यों नहीं … ?
</poem>
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