|संग्रह=मिट्टी का अनुराग / सुभाष काक
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आग से आग के वीथि पर
भ्रांति की ओर
बढ़ गए।
हम जानते हैं
और देवता सो रहे
आराधित होने के संतोष में।
दर्शन और मीमांसा
कुछ स्पष्ट नहीं करते
केवल भाव हैं हमारे पास
तो हम क्यों न
ओंठ से ओंठ मिलाएँ।
मृत्यु हर दिन होती है
तो महाप्रयाण का
क्या भय?
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