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कंवळी ओळूं / गौरीशंकर

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<poem>थूं राजी ना हो
म्हारै हिवड़ै री कंवळी ओळूं
म्हैं थारै गळबांथ
कांई घाली
थूं तो म्हारै माथै ई
खिंडगी पूरी री पूरी।
बाथेड़ा करतो-करतो
मरूं हूं-जीवूं हूं।
बस म्हारलै बाथेड़ां रै
उण पसेव नैं सींच!
कंवळी ओळूं!
थूं पाछी गळबांथी घालसी।</poem>
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