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15:04, 23 नवम्बर 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गौरीशंकर
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}<poem>म्हैं सूंपणी चावूं
स्सो कीं
पण ओ जग
सवाल खड़ा करै।
म्हैं पडूत्तर देवणी चावूं
पण ओ जग
सवाल माथै
सवाल खड़ा करै।
सोचूं-
म्हारो सूंपणो महताऊ है
कै सूंपण माथै खड़्या होया
सवालां रो पडूत्तर देवणो।
सोधूं म्हैं
उण जीव नैं
जको सूंपण नैं ई
सब सूं मोटो मानै।</poem>