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एक सरीसा / गौरीशंकर

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{{KKCatRajasthaniRachna}}<poem>नाटक री रिहर्सल में जावणो
आखै दिन खेत में खटतै मजूर ज्यूं होवै
अर वो जावै।
म्हनैं जीसा भेज्यो होवै
गांव कनलै खेत सूं
दस आळै खेत
आंतरो सात-आठ किलोमीटर रो
कणक काढणी है
म्हैं ढाणोढाण भाजूं
ज्यूं नाटक री रिहर्सल सारू भाजूं
म्हनैं लागै
म्हारी फसल अर म्हारो नाटक
एक सरीसा है।
दोनूं जाणै नवा बीज होवै
आ फसल पाक्यां
म्हैं काढां।</poem>
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