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15:19, 23 नवम्बर 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सिया चौधरी
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}<poem>थारै ई पाण,
लगा लिया पांखड़ा
ऊभगी मेड़ी पर, पण
क्यूं डरपै है काळजो
उडण रै नांव सूं....!
थारै ई पाण,
कर लियो सिणगार
बैठगी डोली में, पण
क्यूं घबरावै है जीव
उण अणसैंधा गांव सूं....!
थारै ई पाण,
बांध लियो भरोसो
चाल पड़ी लारै, पण
क्यूं रुक-झुक खरूंचूं
आस री जमीं पांव सूं...!</poem>