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थारै ई पाण...! / सिया चौधरी

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|रचनाकार=सिया चौधरी
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}}
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{{KKCatRajasthaniRachna}}<poem>थारै ई पाण,
लगा लिया पांखड़ा
ऊभगी मेड़ी पर, पण
क्यूं डरपै है काळजो
उडण रै नांव सूं....!

थारै ई पाण,
कर लियो सिणगार
बैठगी डोली में, पण
क्यूं घबरावै है जीव
उण अणसैंधा गांव सूं....!

थारै ई पाण,
बांध लियो भरोसो
चाल पड़ी लारै, पण
क्यूं रुक-झुक खरूंचूं
आस री जमीं पांव सूं...!</poem>
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