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12:58, 23 दिसम्बर 2013 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=रमेश 'कँवल'
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|संग्रह=
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<poem>
मुस्कराउंगा, गुनगुनाउंगा
मैं तेरा हौसला बढ़ाउंगा
रूठने की अदा निराली है
जब तू रूठेगा, मैं मनाउंगा
क़ुरबतों के चिराग़ गुल करके
फ़ासलों के दिये जलाउंगा
जुगनुओं-सालिबास पहनूंगा
तेरी आंखों में झिलमिलाउंगा
मेहर बांहो गाजबवो जाने-'कंवल’
उसकी गुस्ताखियां गिनाउंगा
</poem>